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नेत्र सुजाने लाल पीत वा, श्याम सब्ज अरु श्वेता।
तामें राग द्वेष उपजावे, परिग्रही जनचेता।। इनि को त्याग सुत्याग परिग्रह, मन वच तन कर राखे।
__ या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं नेत्रेन्द्रियशुभाशुभविषयरहितपरिग्रहत्यागमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
तीन शब्द हैं सचित अचित अरु, मिश्र शब्द सुखदाई।
इनमें राग रु द्वेष करे मुनि, सोइ परिग्रह भाई।। ताते इनके त्यागे परिग्रह, त्याग महाव्रत भाखे।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं श्रीनेन्द्रियशुभाशुभविषयरहितपरिग्रहत्यागमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम्
निर्वामीति स्वाहा।
पांच भावना पंचम व्रत की, त्याग कहो इन मांही। इन जुत परिग्रहत्याग महाव्रत, शुद्ध होत शक नाहीं।। पांच भावना सहित होय जो महाव्रती मुनि भाखे।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं पंचभावनायुतपरिग्रहत्यागमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
(अडिल्ल छन्द)
चार हाथ भू शोध, पांव मुनिवर धरें। इत उत देखन त्याग, कायनिज वश करें।।
सो शुध ईर्यासमिति, महा सुखदाय हैं। या जुत सम्यग्वृत्त, जजों शिवदाय है।। ओं ह्रीं यत्रतत्रावलोकनदोषरहितेर्यासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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