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भोजन नाहिं गरिष्ट करें मुनि, शील सुरक्षा का
दधि
'मेवादिक के खाये, ब्रह्मचर्य व्रत लाजे ॥
घृत
तातें ऐसा भोजन तजि के, शील महाव्रत राखें ।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं वृष्येष्टरसभोजनदोषरहितब्रह्मचर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
अपने तन के मंजन चूरन, न्हवन धोवना लावे। ऐसी किरिया जो मुनि राखे, शीलदोष को पावे।। तातें तन श्रृंगाररहित जो, शील महाव्रत राखे ।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।
ओं ह्रीं स्वशरीरसंस्कारत्याग महाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पंच भावना ऐसी पालें, शील करन शुभ भावे । ताको मुक्ति मनोहर रमणी, वेगहिं पास बुलावे॥
ऐसो शील महाव्रत नीको, जो मुनि दृढ़ करि राखे।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं पंचभावनायुक्त ब्रह्मचर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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