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________________ नारिकथा सुनके जो मनमें, तिय अनुराग बढ़ावे । ताको शील लहे दूषण को, या बिन शील रहावे।। रामाराग कथा से वर्जित, ब्रह्मचर्य शुभ भाखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं स्त्रीरागकथाश्रवणदोषरहितब्रह्मचर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अति सुन्दर नारी तन देखे, वार वार धरि रागा । ताकि शील सुरत्न विरत को, मोटो अवगुन लागा।। ऐसे दोष बिना सुशील व्रत, भवदधि परता राखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं स्त्रीमनोहरांगनिरीक्षणदोषरहितब्रह्मचर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मुनिपद पहले राजसमय में, भोग किये ये भारी। तिनकी याद किये से दूषण, शील लहे दुखकारी ॥ पूर्वरतानुस्मरण रहित यों शील महाव्रत राखे । या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं स्त्रीमनोहरांगनिरीक्षणमलदोषरहितब्रह्मचर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 309
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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