________________
निजथल पर का आना रोके, सो चोरी अघ पावे। व्रत अचौर्य में यातें यतिजन, औगुण मोटो लावे।। शुद्ध अचौर्य महाव्रत जानो, जो यह दोष न राखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।
ओं ह्रीं परोपरोधाकरणयुताचौर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दाता दे सो भोजन ले मुनि, आप न सेन बतावे।
देय इशारा भोजन ले तो, चोरी
दूषण पावे ॥ दोष बिना लय शुद्ध भोजन, सो अचौर्यव्रत भाखे।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं भैक्ष्यशुद्धियुताचौर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आपस मांहो धर्मी जनसों, विसम्बाद ना करहीं। समता धार त्याग यह दूषण, व्रत अचौर्य मन धरहीं।। धर्मी से गोवत्सप्रीतिसम, प्रीति ि सुख चाखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं सधर्माविसंवाददोषरहिताचौर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
पंच भावना ऐसी इन जुत, वृत्त अमल सु कहावे। इन्हें भुलाये चोरि दोष हो, नाहिं निमित्त मिलावे॥
दोष गये सुध होय अचोरी, महाविरत ध्वनि भाखे।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं पंचभावनायुताचौर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
308