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वच शास्त्रानुकूल ही कहना, वच अनुवीचि प्रमानो। शास्त्रविरुद्ध कहे नहिं कबहूं, सत्य-विरतधर मानो।। जो अनुवीचि वच प्रिय होवे, सत्य- महाव्रत भाखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं अनुवीचिभाषणयुतसत्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पांच भावना सत्य विरत को पाल कहे सच वचना। सत्यमहाव्रत-सहित भावना, पाप हरे सुख झरना।। ऐसे सत्य- महाव्रत की जो, पल पल महिमा राखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं अनुवीचिभाषणयुतसत्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सूने घर में नाहीं जावे, जाने चोरी त्यागी।
भूमि परी विसरी परवस्तू, लेय नहीं विन रागी ।।
सो अचौर्य महाव्रतधर यति, भव प्रतिज्ञा राखे ।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, करके व्रत अभिलाखे।
ओं ह्रीं शून्यगृहप्रवेशरहिताचौर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ऊजड़गृह में वास करे तो, चोरी
पावे। तातें छोड़े घर के मांही, मुनि नहिं ध्यान लगावे ||
व्रत अचौर्य यह जान महाव्रत, जिनमन वश में राखे ।
या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।।
ओं ह्रीं निर्जनगृहवासरहिताचौर्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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