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उपजे जबतें अवधिज्ञान उर, आप महा सुखदाई। तबहीं तैं यह बढ़े आयु लों, नाहीं कबहुं घटाई।। वर्धमान यह अवधिज्ञान है, समकित जुत मुनि पावे।
तातें मैं यह ज्ञान जजत हों, यातें मो ढिग आवे।। ओं ह्रीं श्रीवर्धमानसम्यगवधिज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
हीयमान जी अवधि कह्यो है, ताको यह सोभावा। उपजे तब ही तें घटवो कर, अंश सकल निरदावा।। याका अंश बढ़े नहिं कबहू, जिनवानी यों गावे।
तातें मैं यह ज्ञान जजत हों, यातें मो ढिग आवे।। ओं ह्रीं श्रीहीयमानसम्यगवधिज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
उपजे जा भव में उर आवे, अवधिज्ञान सुखकारी। आयु अन्त तक रहे साथ में, पीछे परभव लारी।। अनुगामी है नाम इसी का, अवधिज्ञान कहलावे।
तातें मैं यह ज्ञान जजत हों, यातें मो ढिग आवे।। ओं ह्रीं श्रीअनुगामिसम्यगवधिज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जब जिस क्षेत्र रमें उपजे उर, ज्ञान अवधि सुखदाई। तिसही थानक में थिति जाकी, और क्षेत्र नहिं जाई।। अवधिज्ञान यह अननुगामिनी, परभव संग न जावे।
तातें मैं यह ज्ञान जजत हों, यातें मो ढिग आवे।। ओं ह्रीं श्रीअननुगामिसम्यगवधिज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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