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जा परमाद थकी अघ उपजे, ताके मेंटन भाई। पश्चात्ताप विधी ईर्यापथ, पाक्षिक वार्षिक गाई ।। कहा अंग प्रतिक्रमण प्रभू ने, दोषहरण को थानो । या अँग को मैं लेय अघ्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीप्रतिक्रमणप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन ज्ञान चरित्र सुतप की, विनय कीजिये भाई । गुरुजन गुणिजन को भी कीजे, विनयभाव शुभ लाई।।
इत्यादिक इस विनय अंग में, विनयाचर बखानो।
या अँग को मैं लेय अघ्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीविनयप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नरदेवों के वन्दन की विधि, नति आवर्त सु भाई । परदक्षिण शुद्धी आदिक भी, श्रुति जैसी बतलाई।। क्रम-क्रम सकल कही है यामें, शुभदायक सुखदानो । या अँग को मैं लेय अघ्य कर, पूजों मन वच आनो ।। ओं ह्रीं श्रीकृतिकर्मप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनियों भोजन पानी लेवें, यों चालें यों सोवें। ऐसे वचन कहें मुख सेती, ऐसे अघमल धोवें ॥
मुनि आचार भनी इस मांही, दश वैकालिक मानो। या अँग को मैं लेय अघ्य कर, पूजों मन वच आनो ||
ओं ह्रीं श्रीदशवैकालिकप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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