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तीन लोक का कथन, मोक्ष व्याख्या सही। गणितशास्त्र के सूत्र, और सब विधि कही।। त्रिलोकबिन्दु यह पूर्व, महासुख थान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।।
ओं ह्रीं श्रीत्रिलोकबिन्दुपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जोगीरासा छन्द समताभाव सकल जीवन पै, सम दम संयम भावे।
आरत रौद्र ध्यान निरवारै, धर्म शुक्ल उर लावे।। ऐसो कथन कियो जिस माहीं, सो सामायिक जानो।
या अँग को मैं लेय अध्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीसामायिकप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जामें चौबीसों जिन स्तवन, अतिशय की विधि गाई। गर्भ जन्म तपज्ञान मोक्ष की, और घनी विधि आई।।
अंग चतुर्विंशति स्तवन में, जिनचर्चा पहिचानो।
या अँग को मैं लेय अध्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीचतुर्विंशतिस्तवप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जिन प्रतिमाजिन मान लीजिये, भक्ति घनी मन लाई। तीर्थंकर इक को सिर नावत, हाथ जोडि कर भाई।।
वन्दनांग ये नाम जास को तामें या विधि जानो। या अंग को मैं लेय अध्य कर, पूजों मन वच आनो।। ओं ह्रीं श्रीवन्दनाप्रकीर्णकांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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