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कर्मभेद तिन नाम, बन्ध चवविध सही। उदय सत्त्व को आदि, कर्मरचना सही।। पूरब कर्म प्रवाद, माहि व्याख्यान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।। ___ओं ह्रीं श्रीकर्मप्रवादपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जामें समिति गुप्ति, अनुप्रेक्षादिक कही। पाप त्यागविधि और, महातप अघ नहीं।। प्रत्याख्यान सु पूरब, इस विधि ज्ञान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।।
ओं ह्रीं श्रीप्रत्याख्यानप्रवादपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
विद्या-साधन मन्त्र, जन्त्र विधि जानिये। स्वर लक्षण अरु स्वप्न, आदि विधि मानिये।। पूरब यह विद्यानुवाद, शुभ थान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।।
ओं ह्रीं श्रीविद्यानुवादपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जिन कल्याणक उत्सव, त्रेसठ पद सही। ज्योतिषि गमन विचार, शकुन आदिक कही।।
यों पूरब कल्याण, वाद में ज्ञान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।। ___ओं ह्रीं श्रीकल्याणानुवादपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आयुर्वेद सु मन्त्र, जन्त्र तन्तर घने। इस साधन की कला, और महिमा भने।। पूरब प्राणानुवाद, मांहि बहु ज्ञान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।।
ओं ह्रीं श्रीप्राणानुवादपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
छन्द तथा व्याकर्ण, संगीत कला सही। चौंसठ तिय की कला, काव्य की विधि कही। क्रियाविशाल सु पूरब, मति को थान है। सो श्रुत सम्यग्ज्ञान, जजों थुति आन है।।
ओं ह्रीं श्रीक्रियाविशालपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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