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एकादश प्रतिमा विधि जोय। और बहुत श्रावक विधि होय। अंग उपासक मैं यों कही। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीउपासकाध्ययनांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
एक एक जिन समय मंझार। अन्तःकृत केवलि षट् चार।। अन्तः कृतांग माँहि यों कही। सो श्रुत सम्यक् पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीअन्तःकृतदशांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
एक एक जिन वारें सोय। दश दश मुनि अहमिन्द्र जु होय || अंग अनुत्तर में यों कही। सो श्रुत सम्यक् पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीअनुत्तरोत्पादकदशांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गई वस्तु लिख मूठी माँहि। पूंछे प्रश्न कहे मुनि ठाँहिं। प्रश्न व्याकरण अंग यों कही । सो श्रुत सम्यक् पूजों सही। ओं ह्रीं श्रीप्रश्नव्याकरणांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ अरु अशुभ कर्मफल जान। तीव्र जु मन्द विपाक बखान।। सूत्रविपाक अंग यों कही। सो श्रुत सम्यक् पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीविपाकसूत्रांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल छन्द
व्यय ध्रौव्य अरु उत्पाद द्रव्यलक्षण सही। गुण पर्यय द्रव माँहि, और बहुविध कही।। यह पूरब उत्पाद, माँहि व्याख्यान है। सो श्रुत सम्यक ज्ञान, जजों थुति आन है।। ओं ह्रीं श्रीउत्पादपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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