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चौपाई छन्द ग्यारह अंग पूर्वादि सु जान। अंग बारहों सुरति बखान।। ये सब सम्यक सहित सुभाय। सो श्रुतज्ञान जजों हर्षाय।। ओं ह्रीं श्रीअंगपूर्वश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
खावे जतन जतन तें चले। बोले जतन जतन तें हले।। अचारांग क्रिया यों कही। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं आचारांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अध्ययन विधि विनयादिक और। निज परिणति वेदन जग मौर।।
सूत्रकृतांग विर्षे यों कही। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीसूत्रकृतांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जीव थान उन्नीस बताये। तथा चार सौ षट् श्रुत गाये।। अंग स्थान मांहिं यों कही। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीस्थानांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
होवें जो जो धर्म समान। द्रव्य क्षेत्र कालादिक मान।। समवायांग यथाविधि कही।। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीसमवायांगश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अस्ति नास्ति आदिक स्याद्वाद। एकानेक करे जो वाद।। व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग यों कही। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीव्याख्याप्रज्ञप्तिश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जिन अतिश्य जिनध्वनि प्रगटाय। समवसरण आदिक गुण गाय।।
ज्ञातृकथा अंग में यों कही। सो श्रुत सम्यक पूजों सही।। ओं ह्रीं श्रीज्ञातृकथाश्रुतज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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