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भले गन्धयुत फूल ले माल कीनी। घने वर्ण के कोमला भक्ति चीनी।। धरे हाथ माहीं भली भक्ति गाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
नैवेद्य नीका हितू जान जिय का। भले मोदकादी रस डारि नीका।। धरें पात्र में हाथ ले भक्ति गाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
करे दीप तपनाश शुभ रत्न केरा । धरे थाल मांही खुशी चित्त मेरा।। करों आरती हर्ष सह भक्ति पाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
धरी धूप दशधा भली गन्ध धारी। लिये चन्दनागुरु सुगन्धी है भारी।। करों वीनती अग्नि में खेय भाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
लिये श्रीफला लोंग खारक बदामा। इन्हे आदि फल और बहुजात कामा।। धरे पात्र मांही घनी भक्ति लाई | जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
धूप
लियो नीर चन्दन अखत पुष्प जानो। नैवेद्य फल दीप अरु मानो॥ करो अघ्य सुन्दर घनी भक्ति गाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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