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दोहा समकित मेरे शीश पर करो वाय यह आस। समकित गुण ही मुख रहे, जब तक तन में
स्वास।
ओं ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अध्यम्।
श्री सम्यग्ज्ञानपूजा प्रारम्भ मति श्रुति अवधिज्ञान मन लाय, मनपर्यय केवल समुझाय।
ये ही पांचों सम्यग्ज्ञान, पूजों थाप यहाँ हित आन। ऊँ ह्रीं श्री अष्टबिधसम्यग्ज्ञान! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि क्षिपामः।
भुजंगप्रयात छन्द लिया नीर चोखा, पदम कुण्ड केरा। महा निर्मला गन्ध, जुत मर्म हेरा।। भर्यो स्वर्ण झारी, घनी भक्ति लाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
भला गन्ध धारी, लिया चन्दना है। घिसा नीर से फेर, कर वन्दना है।। धर भक्ति उर से, भले पात्र लाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।
भले तन्दुला ऊजरे खण्ड नाहीं। धरें गन्ध नीकी भली शोभ माहीं।। लिये हाथ अपने घनी भक्ति भाई। जजों ज्ञान सम्यक, घना सौख्यदाई।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा।
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