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कर्मनाश बिन देव कहाय, तिनको परशंसै थुति गाय।
यह अनायतन दोष सुजोय, इस बिन जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुदेवप्रशंसानायतनदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ताहि कुदेव सेवक हूं जान, परशंसै मन में हित आन।
यह अनायतन दोष जु होय, इस बिन जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुदेवसेवकप्रशंसानायतनदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दयारहित ही धर्म सु मान, फिर ताकी परशंसा ठान।
यह अनायतन दोष जु होय, इस बिन जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुधर्मसेवकप्रशंसानायतनदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
हिंसा धर्म सेवकी जान, ताको परशंसै शुभ मान। यह अनायतन दोष जु होय, इस बिन जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुधर्मसेवकप्रशंसानायतनदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
राग द्वेष धर प्रज्ञावान, ये गुरु परशंसै बिन ज्ञान। यह अनायतन दोष जु होय, इस बिन जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुगुरुप्रशंसानायतनदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कुगुरुन की सेवा जो करे, ताकी परशंसा चित धरे।
यह अनायतन दोष जु होय, इस बिन जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुगुरुसेवकप्रशंसानायतनदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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