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सम्यक् परभावा, नहिं भवदावा, मरण मिटावा, सुखकारी।
जो सम्यग्ज्ञानी, दया-निधानी, सब विधिजानी, गुणधारी।। सम्यक् चारित्ता, जग जिय मित्ता, सज्जन चित्ता, मित्र जिसो।
यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ तें न्यारा धर्म धरे। सम्यक् धन जाके, सुर नत बाके, कभी न वाके धन-धारी।
जे सम्यग्ज्ञानी, मिथ्याभानी, ज्ञान पिछानी, सुखकारी।। चारितधर जोगी, शिवतिय भोगा, मोक्षनियोगी, जीव जिसो।
यह तीनों रत्ना कर इन यत्ना, गुरु वच इतना पूज इसो।। सम्यक् सुध सो ही, लखे न मोही, सत्य जु सो ही, कर्म टरे। जिन भाषित ठाने, निज पर जाने, सम्यग्ज्ञान सोहि धरे।। जो चारित धारें, कर्म निवारे, आत्म सुधारें, ध्यान जिसो। यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ तैं न्यारा धर्म धरे।। सम्यक् सरधाना, कुगुरु छुड़ाना, बुध परधाना, मोक्ष चहा। सो सम्यज्ञानी, जिनध्वनि जानी, सब विध मानी, और कहा।। जे चरित धारी, निज अघहारी, पुण्य भंडारी, जान जिसो। यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ तें न्यारा धर्म धरे।।
दोहा सम्यग्दर्शन ज्ञान सह, चारित देहु मिलाय। तीनों शिवमग जिन कहे, जो होते शिवदाय।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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