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श्री सम्यग्दर्शन पूजा
अडिल्ल छन्द सम्यग्दर्शन सोय, जहाँ वसुमद नहीं, शङ्कादिक वसु दोष, रहें जामें नहीं। नहीं मूढ़ता तीन, अनायतन षट नहीं, या विध समकित थाप, जजों शुभथल मही। ओं ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शन! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। परिपुष्पांजलि क्षिपामः।
अथ अष्टकम् - गीता छन्द वर नीर सागर क्षीर जैसो, उज्जवलो सुखदाय जी। शुभगन्ध निर्मल स्वाद याको, सद्य शुद्ध सुल्याय जी।।
धरि रतनझारी हाथ ले निज, भक्ति उर में बहु धरी। मैं जजों सम्यक् दरस मल बिन, भाव सों थुति उच्चरी।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
बाबनो चन्दन सुगन्ध सु, नीर संग घसि लाय हो। शुभ अगर आदि मनोज्ञ गन्ध, सु तास में मिलवाय हों।।
ले कनक पातर भावशुभ तें, भक्ति धन-लक्षहिं धरी। मैं जजों सम्यकदरशमल बिन, भाव सों थति उच्चरो।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षत अखण्डित बीन नख शिख, शुद्ध उज्जवल लाय जी। शुभ गन्धमय अति धोय नीके, आप कर सुखदाय जी।। कर भले पातर मांहि तिनको, भक्ति शुभ फलदा करी। मैं जजों सम्यकदरशमल बिन, भाव सों थुति उच्चरी।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
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