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दरश ज्ञान वृत्त ये, रत्न शुभ हैं सही। यही तीन रत्न शिव, लोक को दें मही।। जान यों अध्य, ले, आय उमगाय के। जजों दर्शन सुज्ञान, वृत्त हरषाय के।।
ओं ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यः महाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाल
तीन रत्न मुनिराज धन, अविनाशी वि न छेह। इन्द्र स्तुतिवाँछा करे, कवि मांगत है येह।।
त्रिभंगी छन्द सम्यक दृक जाके, हो शिव ताके, दोष न बाके होय कदा। सम्यक् शुध जानो, हो भ्रम हानो, तत्त्व पिछानो, मोक्ष पदा।। चारित शुध धारें, सम्यक लारे, भवदधि तारे नाव जिसो। यह तीनों रत्ना कर इन यत्ना, गुरुवच इतना पूज तिसो।। यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ नै न्यारा धर्म धरे।
शुभ ज्ञान उपावा सो शुध भावा, शिवमग धारा कर्म हरे। शुध चारित नीका, सुखदा जियका, शिवतिय पियका मीत जिसो।
यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ नै न्यारा धर्म धरे। तिस सम्यक् पाया दोष उड़ाया, जिनगुण गाया, ज्ञान धरं। ले सम्यक् ज्ञानी, अम्मृत पानी, भवतप हानी, पुष्ट करं।। चारित भवसागर, नाव उजागर, पार उतारन, जान तिसो। यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ तें न्यारा धर्म धरे। सुध सम्यक् सारं, भविजिय धारं, है भव तार, सिद्ध थलं। यह सम्यक् ज्ञानं, भ्रमतम हानं, यह विध जानो, युक्तकल।। चारित शुध सोई, शिवमग जोई, तारक जो हो, नाव जिसो। यह सम्यक् धारा सबको प्यारा, अघ तें न्यारा धर्म धरे।
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