________________
जल चंदनं आदिक दरब, पूजों वसु जिनराय।
सोम्य ग्रह दूषण मिट, पूरन अर्ध चढ़ाय। विमलनाथ अनंतनाथ, सु धर्मनाथ जु शांत ये।
कुन्थु अरह जु नमिय जिन महावीर आठों जिन जजे।। ऊँ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो महाअर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला विमलनाथ जिन नमों, नमों जु अनन्तनाथ जिन।
धर्मनाथ पुनि नमों, नमों शांति कर्ता तिन।। कुन्थुनाथ पद वन्द, वन्दन हों अरहनाथ जिन। नमिय प्रणमि जिन पाय, पाय जिन वर्धमान जिमि।।
ये आठों जिनरायको, हाथजोड़ शिर धरत हों। सोम तनुज दुःख हरनको, मंगल आरति करत हों।।
पद्धड़ी छन्द जय विमल विमल आतम प्रकाश। षट् द्रव्य चराचर लोक वास।। जय जय अनन्त गुण हैं अनन्त। सुर नर जस गावत लहे न अन्त।। ___ जय धर्म धुरन्धर धर्मनाथ। जग जीव उधारन मुक्ति साथ।। जय शांतिनाथ जग शांति करन। भव जवीन के दुःख दारिद्र हरन।। जय कुन्थु जिन कुन्थादि जीव। प्रतिपालक कर सुख दे अतीव।।
जय अरह जिनेश्वर अष्ट कर्म। रिपु नाम लियो शिव रमन शर्म। जय नमिय नमिय सुर वर खगेश। इन्द्रादि चन्द्र थुति करत शेष।।
जय वर्धमान जग वर्धमान। उपदेश देय लहि मुक्ति थान। शशि सुत अरिष्ट जिनेन्द्र पाय।। मन वच तनकर जुग जोड़ हाथ।
मनसिन्धु जलधि तव नवत माथ।। ऊँ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
247