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ये आठ जिनेश्वर नमत सुरेश्वर, भव्य जीव मंगल करन। मन वांछित पूरे पातक चूरे, जन्म मणसागर तरनं
॥ इत्याशीर्वाद।
गुरु अरिष्टनिवारक श्री अष्ट जिन पूजा मन वच काय शुद्ध कर, पूजों आठ जिनेश। गुरु अरिष्ट सब नाश हो, उपजे सुख विशेष।।
छप्पय ऋषभदेव जिनराज, अजित जिन संभवस्वामी। अभिनन्दन जिन सुमति, सुपारस शीतल स्वामी।।
श्री श्रेयांस जिनदेव, सेव सब करत सुरासुर। मन्वांछित दातार, मारजित तीन लोक गुरु।।
संवौष्ट् ठः ठः तिष्ठ सुसन्निधि हूजिये।
गुरु अरष्टिके नाशको, आठ जिनेश्वर पूजिये।। ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक उज्ज्वल जल लीजे, मन शुचि कीजे हाटकमय भृगार भरं। जिन धार दिवाई, तृषा नसाई, भवजल निधि वे पार परं।। ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं।
शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हर।। ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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