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मत भई आवत मकरन्द सार, त्रय धुलि सार सुन्दर अपार। कल्याणक पांचों सुख निधान, पंचम गति दाता है सुजान।।
साढ़े बारह कोड़ी जु सार, बाजै दिन वेद बजे अपार। धरणेन्द्र नरेन्द्र सुरेन्द्र ईस, त्रिलोक नमत कर धरि ऋषीस।। सुर मुक्त रमा वर नमत बार, दोऊ हाथ जोड़ कर बार बार। याके पद नमत आनंद होय, दूति आगे दिनकर छिपत जाय।। मन शुद्ध समुद्र हृदय विचार, सुख दाता सब जनको अपार।
मन वच तन कर पूजा निहार, कीजे सुखदायक जगत सार।। ऊँ ह्रीं सूर्यग्रह अरिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
सब जन हितकारी, सुख अति भारी, मारी रोगादिक हरणं। पापादिक टारै ग्रह निरवारै, भव्य जीव सब सुख करणं।।
इति आशीर्वादः परिपुष्पांजलिं क्षिपेत।
चन्द्र अरिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभु पूजा निश पति पीड़ा, ठन गोचर लग्न विषै परे। वसु विधि चतुर सुजान, चन्द्रप्रभू पूजा करे।।
चन्द्रपुरीके बीच चन्द्रप्रभु अवतरै। लक्षण सोहे चन्द्र सबनके मन हरें।।
भव्य जीव सुखकाज द्रव्य ले धरत हैं। सोम दोषके हेत थापना करत हैं।। ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभु जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन, अत्र तिष्ठ
तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक कंचर झारी जडत जडात, क्षीरोदक भर जिनहिं चढ़ात।
जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।। चन्द्रप्रभु पूजौ मन लाय, सोम दोष तातै मिट जाय।
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