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जल चन्दन लाया सुमन सुहाया, तन्दुल मुक्ता सम कहिये। चरु दीपक लीजे धूप सु खेजे, फल ले वसु कर्मन दहिये।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कूंजत है। दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ऊँ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
सलिल गंध ले फूल सुगन्धित लीजिये। तन्दुल ले चरु दीप • धूप 'खेविजिये ।। कमल मोदको दोष तुरंत ही धूजिये । पद्म प्रभु जिनराज सुसन्मुख हूजिये || ऊँ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पूणार्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
जयमाला
जै जै सुखकारी, सब दुखहारी, भारी रोगादिक हरन। इन्द्रादिक आवे, प्रभु गुण गावे, मंदिर गिर मंजन करण।। इत्यादिक साजै दुंदुभि बाजैं, तीन लोक सेवत चरणं। पद्मप्रभु पूजक पानत धुजत भव भव मांगत शरणं ।।
जय पद्मप्रभु पूजा कराय, सूरज ग्रह दूषण तुरत जाय। नौ योजन समवसरण बखान, घण्टा झालर सहित वितान।। शतइन्द्र नमत तिस चरन आय, दशशत गणधर शोभा धराया। वाणी घनधोर जु घटा जोर, धन शब्द सुनत भवि नचै मोर।। भामण्डल आभा लसत भूर, चन्द्रादिक कोट कला जु सूर। तहां वृक्ष अशोक महां उतंग, सब जीवन शोक हरे अभंग।
सुमनादिक सुर वर्षा कराय, वे दाग चंवर प्रभुपै ढराय। सिंहासन तीन त्रिलोक ईश, त्रय छत्र फिर नग जड़त शीश ||
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