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मणि दीपक लीजें घाव भरीजे, कीजे धनसारक बाती। जगजोत जगावे जगमग जगमग, मोहि तिमिर को है घाती।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत है।
दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति
स्वाहा।
कालगुरु धूप अधिक अनूपं, निर्मल रूप घनसारं। खेवो प्रभु आगे पातक भागे, जागे सुख दुख सब हरनं।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत है।
दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ऊँ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति
स्वाहा।
श्रीफल ले आओ सेव चढाओ, अन्य अमर फल अविकार। वांछित फल पावो जिनगुण गावो, दुख दरिद्र वसु कर्महर। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत है।
दिनकर दख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ऊँ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति
स्वाहा।
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