________________
तन्दुल गुणमंडित सुर भवि मंडित, पूजत पंडित हितकारी। अक्षय पद पावों अछत चढ़ावो गावो गुण शिव सुखकारी ॥ पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कूंजत है। दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति
स्वाहा।
मचकुन्द मंगावे कमल चढ़ावे, बकुल बेल द्दग चित्त हारी । मंदर ले आवो मदन नसावो, शिवसुख पावो हितकारी।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कूंजत है। दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूज हैं।
ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति
स्वाहा।
गौ घृत ले धरिये, खाजे करिये, भरिये हाटक मय थारी | विंजन बहु लीजे पूजा कीजे, दोष क्षुधादिक अघहारी।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कूंजत है।
दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।।
ऊँ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति
स्वाहा।
233