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सूर्यगह अरिष्टनिवरक पद्मप्रभु पूजा
सोरठा पूजों पदम जिनेन्द्र, गोचर लग्न विषे यदा। सूर्य करे दुख दंद, दुख होवे सब जीवको।।
(अडिल्ल छन्द) पंचकल्याणक सहित, ज्ञान पंचम लौ। समोसरन सुख साथ, मुक्तिमांहि वसैं।। आह्वानन कर तिष्ठ सन्निधी कीजिये। सूरज ग्रह होय शांत, जगत सुख लीजिये। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक (छन्द त्रिभंगी)
सोने की झारी सब सुखकारी, क्षीरोदधि जल भर लीजे।
भव ताप मिटाई तृषा नसाई, धार जिन चरनन दीजे।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत है।
दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति
स्वाहा।
मलियागिरि चन्दन दाह निकंदन, जिनपद वंदन सुखदाई।
कुमकुम जुत लीजे अरचन कीजे, ताप हरीजे दुखदाई।। पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत है।
दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं।। ऊँ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति
स्वाहा।
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