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जय पुष्पदंत कर कर्म अन्त, जय शीतल जिन शीतल करंत।
जय श्रेय करन श्रेयांस देव, जय वासुपूज्य पूजत सुमेव।। जय विमल विमल कर जगत जीव, जय जय अनन्तसुख अति सदीव।
जय धर्मधुरन्धर धर्मनाथ, जय शांति जिनेश्वर मुक्ति साथ।। जय कुन्थुनाथ शिव-सुखनिधान, जय अरहजिनेश्वरं मुक्तिखान। जय मल्लिनाथ पद पद्म भास, जय मुनिसुव्रत सुव्रत प्रकाश।। जय जय नमि देव दयाल सन्त, जय नेमनाथ तसुगुण अनन्त।
जय पारस प्रभु संकट निवार, जय वर्धमान आनन्दकार।। नवग्रह अनिष्ट जब होय आय, तब पूजे श्रीजिनदेव पाय।
मन वच तन मन सुखसिंधु होय, ग्रहशांति रीत यह कही जोय।। ऊँ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महाघु
निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) चौवीसों जिनदेव प्रभु, ग्रह सम्बन्ध विचार। पुनि पूजों प्रत्येक तुम, जो पाऊं सुख सार।।
इत्याशीर्वाद।
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