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जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।। ऊँ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिर केशर घनसार, चरचत जिन भव ताप निवार।
जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।
चन्द्रप्रभु पूजौ मन लाय, सोम दोष तातै मिट जाय। ऊँ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चन्दनं निर्वपामीति
स्वाहा।
खण्डरहित अक्षत शशिरूप, पूंज चढाय होय शिवभूप।
जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।
चन्द्रप्रभु पूजौ मन लाय, सोम दोष तातै मिट जाय। ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति
स्वाहा।
कमल कुन्द कमलिनी अभंग, कल्पतरु जस हरै अमंग।
जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।
चन्द्रप्रभु पूजौ मन लाय, सोम दोष तातै मिट जाय। ऊँ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
धेवर बावर मोदक लेऊ, दोष क्षधाहर थार भरेउ।
जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।
चन्द्रप्रभु पूजौ मन लाय, सोम दोष तातै मिट जाय। ऊँ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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