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नन्दा वापी दुतिय कोण रतिकर महा, मन्दिर श्री जिनराज तपो तापर कहाँ।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।4।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदावापिका अग्नेयकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
नन्दवती वापी विच दधिमुख देखिये, तापर जिनवर भवन सुअद्भुत पेखिये।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।5।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदावती वापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
नन्दवती वापी मुख कोण सु रतिकरा, प्रथम तहाँ जिनगेह अधिक उपमा धरा।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।6।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नन्दवती वापिकाआग्नेयकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
नन्दवती वापी मुख कोण सुजानिये, दूजे रतिकर पर जिनभवन बखानिये। सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।7॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नन्दवती वापिका नैऋत्यकोणे रतिकर गिरि
जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
नन्दोत्तरा वापि मुख विच ताको भनों, दधिमुखगिरि के शीश भन जिनवर तनों।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।8।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदोत्तरा वापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
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