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नन्दोत्तरा वापि सु कोण रतिकर दियै, आदि श्री जिन धाम देख दिनकर छियै।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।9। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदोत्तरा वापिकानैऋत्यकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
बाहर कोण सुजान वापी नन्दोत्तरा, रतिकर गिरि के शीश भवन जिन दूसरा।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।10। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदोत्तरावापिका वायव्यकोणेरतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
वापी नन्दीघोषा सु बीच निहारिये, दधिमुख पर जिन भवन सरस उर धारिये।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।11।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशिनन्दीघोषा वापिकावायव्यकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
पहलो कोण सुजान नन्दीघोषा तनो, रतिकर पर जिन भवन बहुत अद्भुत बनो।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।12।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नन्दीघोषा वापिकावायव्यकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
नन्दीघोषा वापि मुख कोण सु दूसरो, रतिकर पर जिनधाम 'लाल' पायन परो।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।13।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नन्दीघोषा वापिकाईशानकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
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