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अर्द्ध चौपाई जल फल आठों द्रव्य मिलाय, जिनवर पूज हृदय हर्षाय।
महा सुख होय, देखे नाथ महा सुख होय।। बावन जिनमन्दिर सुखदाय, पूजत आठों कर्म नशाय।
महा सुख होय, देखे नाथ महा सुख होय।।10। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्व दक्षिण पश्चिमोत्तर द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ सर्व जिनबिम्बेभ्यो
महायं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री नंदीश्वरद्वीप पूर्व दिशि अर्घ
(अडिल्ल छन्द) है नन्दीश्वर दीप दिशा पूरब जहाँ, अंजनगिरि के शिखर भवन जिनवर तहाँ। सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।1।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि अञ्जनगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा॥
नन्दा वापी बीच सुदधिमुख गिरि कहो, तापर श्री जिनभवन सरस उपमा लहो।
सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।2।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदावापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
नन्दा वापी प्रथम कोण रतिकर परो, ता ऊपर जिनधाम विराजत है खरो। सुरपति पूजन जाँय हर्ष, मन में धरें, हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ पूजन करें।।3।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशि नंदावापिकां ईशानकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ
जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
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