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फेनी गोझा पकवान, रसना को प्यारे। जिन सम्मुख देत चढ़ाय, हर्ष हिये धारें।। नन्दीश्वर द्वीप महान, चारों दिश सोहैं। बावन जिनमन्दिर जान, सुर नर मन मोहैं॥5॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ सर्व जिनबिम्बेभ्यो क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ले दीप अमोलकसार, जगमग ज्योति जगी । ले कनक रकाबी धार प्रभुसों प्रीति लगी।। नन्दीश्वर द्वीप महान, चारों दिश सोहैं। बावन जिनमन्दिर जान, सुर नर मन मोहैं ||6|| ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ सर्व जिनबिम्बेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
दश विधि की धूप बनाय, प्रभु आगे खेवो । कर्मादिक रोग नशाय, श्री जिनपद सेवो । नन्दीश्वर द्वीप महान, चारों दिश सोहैं। बावन जिनमन्दिर जान, सुर नर मन मोहैं।।7। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ सर्व जिनबिम्बेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल परम मनोहर लाय, नैनन सुखकारी। जिन चरन सुपूजन जाय, पावों शिव प्यारी।। नन्दीश्वर द्वीप महान, चारों दिश सोहैं। बावन जिनमन्दिर जान, सुर नर मन मोहैं | | 8 ॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ सर्व जिनबिम्बेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल फल बसु द्रव्य मिला, अर्घ बनावत हैं। जिनराज सु पूजत जाय, प्रभु गुण गावत हैं।। नन्दीश्वर द्वीप महान, चारों दिश सोहैं। बावन जिनमन्दिर जान, सुर नर मन मोहैं||9| ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ सर्व जिनबिम्बेभ्यो अनर्घ्यं पद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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