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मुनियानन्द की चाल
मेरु विजया विषै थान जिनके सही । बिम्ब तिनमें जिसे देव जिन छवि कही ॥1॥ दिष्ट नाशा दिये ध्यान पदमासना। देखते नाश होय पाप की वासना॥2॥ शांति मुद्र 'बिना राग सुखदायजी। मानु अब दिव्य धुनि खिरैगी आयजी।। इन्द्र से दीन होय करै अरदासना। देखते नाश होय पाप की वासना || 31 ध्यान में मुनि जिन बिम्ब जे ध्याय है। आपनौ रूप ऐसो कियो चाय हैं। जोय जिन ध्यान नहीं होय जग आसना। देखते नाश होय पाप की वासना॥4॥ भक्त मन मोहनी देह जिनराय की । देखते बढ़े उर राग सुखदाय जी ।। मोक्ष तिय नित चहै रूप तिन भासना। देखते नाश होय पाप की वासना ॥5॥ देखते मूर्ति जिन राय सुध आय है। सोम अति सोहनी काय जिनराय है। लखै शुभ ध्यान दुर ध्यान की वासना। देखते नाश होय पाप की वासना ॥6॥ आदि इनको घनी ऊपमा दायजी । अकिरतम देव जिन बिम्ब में पाय जी।। तीर्थ मंगल करा और समता सना। देखते नाश होय पाप की वासना॥7॥ बिम्ब सब रतन मय तजे बहु धारजी । जोति तिनकी कनै दबै शशिसारजी॥ कनक मय गेह जिन धरें परकासना । देखते नाश होय पाप की वासना॥8॥ बड़े विस्तार जिन थान को जानिये । कोटि त्रय वेष्टि रचना घनी मानिये ।। वाग वन महल वापी सुदुख नाशना । देखते नाश होय पाप की वासना ॥9॥ दूसरे मेरु विजय तनी विधि कही। वरनतै सोभ पुण्य रास भवयनि लही।। तीर्थ सिद्ध क्षेत्र मुनि करै कर्म नासना। देखते नाश होय पाप की वासना॥10॥ विजय यह मेर बहु घेर में जानिये। देव खग गमन तहँ सदा तिस थानिये।। जजैं ते जाय हम करें यह उपासना। देखते नाश होय पाप की वासना।।11॥ दोहा विजय मेरु गुनमाल को, जपें जोय भवि कोय। ताको तीरथ लाभ हैं, दिये भाव फल होय ।। 12 ॥
ऊँ ह्रीं विजयमेरुसंबंधिजिनालयेभ्यो पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा। (इति विजय मेरु पूजा समाप्त)
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