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दिस इस मेरु की विजयारध महा गिरिदा जी।
पूरब तिन पै षोडश जिन भवन पूजैं मिट है अघ फंदाजी ॥
विजय मेरु तीरथ सही पूजैं सुर खग यह थानों जी। मन वच भक्त लगाय कैं।।13।। ऊँ ह्रीं विजयमेरुपूर्वदिशि षोडशविजयार्थेषुषोडशजिनचैत्यालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूरब दिस इस मेरु की बसु परवत सार विक्ष्यारो जी। तिनपै जिन थल आठ हैं ते पूजों मन वच धारोजी।।
विजय मेरु तीरथ सही पूजैं सुर खग यह थानों जी। मन वच भक्त लगाय कैं।।14।। ऊँ ह्रीं विजयमेरुपूर्वदिश्यष्टवक्ष्यारेष्वष्ट जिनचैत्यालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पच्छम विजय सुमेरु की आठ बिक्ष्यार सुजानौ जी। आठ तिनों पै जिनभवन ते पूजों अरघ सुआनौ जी।।
विजयमेरु तीरथ सही पूजैं सुर खग यह थानों जी। मन वच भक्त लगाय कैं।।15। ॐ ह्रीं विजयमेरु पश्चिमदिश्यष्टवक्ष्यारेष्वष्ट जिनचैत्यालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल छन्द
विजय मेरु संग इस प्रकार वन चार जी । गजदंता वृक्षदोय कुलाचल सार जी।। विजयारध चौंतीस वक्ष्यार सुजानिये। इन पै जे जिन थान जजौं अर्घ आनिये।। ॐ ह्रीं विजयमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो महार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अथ जयमाला - दोहा
विजय मेरु दूजो सही, जान अकिरतन थान। या संबंध जे जिन भवन, पूजैं सुर खग आन।।1।।
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