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पञ्चमेरु
पूजन
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ऊँ
विधान (कवि श्री टेकचंद्र जी कृत )
अथ व्रतमाहात्म्यवर्णन (सर्वदीर्घ वेसरी छन्द) वानी पूजों देवा के । तातैं टूटे मोहा जेरी ॥
साधा ध्याऊँ सांचा भाऊँ। या भौ माही नाहीं आऊँ ॥1॥
सर्वदीर्घ जोगीरासा की चाल
देवा सेवा सो या भौ में आवा जावो हारै। आपा तार्यो औरे तारैं ज्यों नावा औतारै ।। जाका ध्याना जोगी आना पापा हानाकाजै । ऐसो नाथो द्योमो साथो भौ-भौ साता साजै॥2॥ साधा साधो जो या भौ में जाके रागा नाहीं । आपा साधै प्रानी नावा ध्यानाध्येना माहीं ॥ तापा आपै जापा जापै मोको राखै सोही । मेरो सीसा या पावे नाखो दीना होही || 3 ॥ ऐसे देवा याकी वानी साधा तीनो सोही । मीको ज्ञानो ऐसी दीजो मो पै राजी होही। तातैं नांदी दीपा पांचों मेरा पूजा सारी । पूरी हो जावैं सा कीजौ ऐसी वांछा म्हारी॥4॥
वेस छन्द
या पूजा श्रीपाले कीनी । काया रोगा की खय लीनी ॥ या पूजा सो लोका देवैं। जो जीवा नीका है सेवैं॥5॥
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