________________
जियकी जाति विरोध नहोय, गिरिवर बंदो करधरि दोय ।। ज्ञान चरण तप साधनसोय, निजअनुभव कोध्यानजु होय। शिवमन्दिर को द्वारो सोय, गिरिवर बंदोकर धरि दोय ।। जो भवि वन्दे एकहि वार, नरक निगोद पशु गति टार सुरशिवपद को पावे सोय, गिरिवर बंदोकर धरि दोय।। जाकी महिमा अगम अपार, गणधर कहत न पावें पार । तुच्छबुद्धि मैं मतिकर हीन, कही भक्तिवश केवल लीन।।
( धत्ता छन्द)
श्रीसिधखेतं, अतिसुख-देतं, शीघ्रहिं भवदधि पार करं। अरिकर्मविनाशन शिवसुखकारन, जयगिरिवरजगतारवरं ।। ओं ह्रीं श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यः पूर्णाघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा)
शिखर सु पूजे जो सदा, मनवचतन चित लाय।
दास ‘जवाहर' यों कही, सो शिवपुर को जाय ।।
(इत्याशीर्वादः) पूजा विधान समाप्तम्
श्री सम्मेदशिखर
157