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ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः फलम् निर्वपामीति
स्वाहा।
वसुद्रव्ययुत शुभ अध्य लेकर, मन प्रफुल्लित कीजिये। तबु दास यह वरदान मांगे, मोक्षलक्ष्मी दीजिये।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्महर शिवपुर गये।
सो थान परमपवित्र पूजों, तासु फल पुनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
नित करें जो नरनारि पूजा, भक्तिभाव सु लायके। तिनको सुजस यह कहें 'जवाहर' हरष मनमें धारके।।
ते हों सुरेश नरेश खगपति, समझ पूजाफल यही।
सम्मेदगिरि की करहुँ पूजा, पाय हो शिवपुर मही।।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
कवित्त परम शिखरसम्मेद, सबहि को हैं सुख करता। बन्दे जे नरनारि, तिन्हों के अघ सब हरता।। नरकपशु गति टरे, सौख्य जग के बहु पावें। नरपति सुरपति होय, फेरि शिवपुर को जावें।।
दोहा जे तीरथ बन्दे नहीं, सुने धर्म नहिं सार। ते भववन में भ्रमहिंगे, कबहुँ न पावें पार।। नरभव उत्तम पाय के, श्रावककुल अवतार। पूजा जिनवर की करें, ते उतरें भवपार।। सबविध जोग जुपायजे, शिखर न बंदे सार। रतन पदारथ पाय ते, देत समुद्र में डार।।
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