________________
नेवज मनोहर थाल में भर, हरष कर ले आवनें।
करहु पूजा भाव सों, नर क्षुधारोग मिटावनें।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये।
सो थान परमपवित्र पूजों, तासु फल पुनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः नैवेद्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
दीप ज्योति प्रकाश करके, प्रभु के गुण गावनें। मोहतिमिर विनाश करके, ज्ञानभानु प्रकाशनें।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये।
सो थान परमपवित्र पूजों, तास फल पुनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः दीपम् निर्वपामीति
स्वाहा।
वर धूप सुन्दर ले दशांगी, ज्वलन माहिं सु खेइये। वसु कर्मनाशन के सु कारण, पूज प्रभु की कीजिए।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये।
सो थान परमपवित्र पूजों, तास फल पनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः धूपम् निर्वपामीति
स्वाहा।
उत्कृष्ट फल जग माहि जेते, ढूँढ कर ले आइये। जों नेत्र रसना लगें सुन्दर, फल अनूप चढ़ाइये।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये। सो थान परमपवित्र पूजों, तासु फल पुनि संचये।।
150