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जे करें न तन आभरन सार, तन गन्धलेप त्याग सुधार।
इत्यादि कायरचना जु नाहिं, ते मुनिवर बन्दों हरष लांहिं।। ॐ ह्रीं मलत्यागमूलगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जे रहें नगन तन मातजात, तिन पै नहिं तृणतुष वसन पात।
नभ ओढ़े भूतल तन बिछाय, ते साधु नमों वसुद्रव्य लाय। ॐ हीं वस्त्रत्यागमूलगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निजकर तें निज कच लोंच लेय, चितकरुणा करि उर धीर जेय।
तन शोभा तजि मन शुद्धभाय, ते साधु नमों वसुद्रव्य लाय।। ऊँ ह्रीं कचलुंचनगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
चौपाई एक बार लघु भोजन खाय, रसविन तथा सहित रस पाय।
भरना उदर ममत कछु नांय, ते मैं साधु जजों उमगाय।। ऊँ ह्रीं एकभुक्तिगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
एक ठाम थिति भोजन करे, तन थिर काज राग बिन भरे।
मोक्षपन्थ साधन के काज, ते मैं साधु जजों शिवकाज।। ॐ ह्रीं स्थितिभुक्तिगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
सूक्षम जीवदया के काज, दांतुन भी त्यागें मुनिराज।
सकल जन्तु बन्धू सम जान, ते मैं साधु नमों अघहान।। ऊँ ह्रीं दन्तधावनरहितगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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