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चाल जोगीरासा की
पंच महाव्रत समिति पाँच लखि, इन्द्री सब वश आने। आवशि षट् भू शयन नहुन तजि, वसन त्याग शुभ ठाने।।
कचलोचन इकवार लघू अन, एकठाम थिति काजे।
दन्त न धोबन बीस आठ इह, साधु सुभग गुण साजे।। ऊँ ह्रीं अष्टाविंशतिमूलगुणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला - दोहा ये अट्ठाइस गुण सकल, धरें मोक्षमग जान। तिनको सुनि व्याख्यान भवि धारत उपजे ज्ञान।।
चाल भरथरी की ते गुरु पूजों भाव सों, जे करुणा प्रतिपाल। सो मुनि दीन दयाल, ते गुरु पूजों भव सों।।टेक।। पंच महाव्रत आदरें, पांचों समिति समेत। इन्द्री पाँचों वश करें, षट आवश्यक हेत।। __ भूमि शयन मंजनतजन, पटके त्यागी जान। कचलुंचन लघु अशन है,
असथिति है शुभ आन।।। दांतुन कबहुं ना करें, हैं मनि दीनदयाल। सब जिय रक्षक हित धनी, सब ही जग प्रतिपाल।।
सत्य महाव्रत जे धरें, भाषे असत न वैन। त्याग अदत्तादान को, ब्रह्मचर्य सुख चैन। नग्न वपू परिग्रह तजें, चालें भूमि निहार। खांय देखि धर लेय सो, जो हू ठाम विचार।। मत्र मूत्रादिक त्याग हैं, सो हू भूमि निहार। इन्द्री पाँचों वश करें, विरकत चित्त उदार।। सपरस इन्द्री वश करें, आठों विषय निवार। रसना के पांचों विषय, त्यागें ममत प्रहार।।
गन्ध तने दोऊ विषय, जीते दुखदा जान। पाँच विषय नेत्रों तने, जीते शुभचित आन।। कारण-विषय तीनों हरे, मिश्र अचित्त सचित्त। कठिन भूमि सोवन बने, रक्षण जीव निमित्त।। मंजन-विधि नहिं तन विर्षे, झलके नसासु जाल। वसन रहित-तन सोहनो,
पजत सुर सु विशाला
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