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पूर्व प्राणावाद मांहीं, मन्त्र तन्त्र सुविधि कही। फिर वैद्य ज्योतिष भूतनाशन, की सकल विधिहै सही।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं प्राणानुवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व क्रिया विशाल के मधि, गीत छन्द सुविधि कही। शास्त्र नय लंकार चौसठ, कला तियकी तहां सही ।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं क्रियाविशालपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व चरम त्रिलोक-बिन्दू, सुकथन तँह यों वरनयो। लोकत्रय के सुखदुखों का, मुकुरसम वर्णन कियो || इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।।
ऊँ ह्रीं लोकबिन्दुपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पद्धरि छन्द
अंगएकदश अद्भुत सुज्ञान, फिर पूर्व चौदह और जान।
इनके गुण वेत्ता ते महन्त, जिन उपाध्याय पूजों सुसन्त।।
ऊँ ह्रीं एकादशांगचतुर्दशपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला - दोहा
बीस पाँच गुण धार गुरु, उपाध्याय हितदाय । तिन बन्दे थुति के किये, महापुण्य उपजाय।।
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