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पूर्व कर्म-प्रवाद जु तामधि, कर्म की सब विधि कही। सत्त्व बन्ध उदय प्रकृतियाँ, आदि सब भाषीं सही। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं कर्मप्रवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व प्रत्याख्यान नवमों, वस्तु इत्यादिक कही। अरु द्रव्य क्षेत्र सुकाल संवर, वास मत्यादिक सही।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये। ऊँ ह्रीं प्रत्याख्यानपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व है विद्यानुवाद सु, अष्ट निमित्त बखानिये।
विद्या सुसाधन रूप फल बल, आदि रीति सु मानिये ।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये।
वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं विद्यानुवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व है कल्याणानुवाद सु, वहां इस विधि वरण्यो। कल्याण पांचों जिन तने, ज्योतिष गमनको फल चयो ।
इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये।
वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।।
ऊँ ह्रीं कल्याणानुवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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