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अस्ति नास्ति सुपूर्व चौथो, सप्त भंग बखानिये। द्रव्य तत्त्व पदार्थ के सब, अस्ति नास्ति सुजानिये।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं अस्तिनास्तिपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व ज्ञान प्रवाद पंचम, ज्ञान वसु लक्षण कहे।
सब ज्ञानफल परमान इनको, आदि सबविधि ते लहे ।।
इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये।
वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।।
ॐ ह्रीं ज्ञानप्रवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व सत्य प्रवाद षष्ठम, गुप्ति भेद बखानिये । सत्य असत्य अनेक वैन, सुभेद तातें जानिये ।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये।
वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।।
ऊँ ह्रीं सत्यप्रवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आत्मप्रवाद सुपूर्व सप्तम, जीव लक्षण तँह कह्यो। जीव आयो वा गयो इन, आदि इस पूरब ठह्यो।।
इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये।
वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।
ऊँ ह्रीं आत्मप्रवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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