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चौदहपूर्वी का वर्णन
अडिल्ल
अब चौदह पूरब की कथा सुहावनी, तिन यह पाई रिद्धि जिने अघरज हनी। इनके धारी उपाध्याय जगगुरु कहे, तिनके पद वसुद्रव्य थकी जजि अघ दहे।। ॐ ह्रीं चतुर्दशपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गीता छन्द
पूर्व है उत्पाद पहला, कथम तामें यों सही। वस्तु के उत्पाद व्यय ध्रुव, आदि महिमा अति लही।। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं उत्पादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व अग्रायण सु दूजो, कथन नय दुर्णय करे। तत्त्व द्रव्य पदार्थ के पर - माण जाने उर धरे ||
इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ऊँ ह्रीं अग्रायणीपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व वीर्य प्रवाद तीजों, कथ वीरज को चले। आत्मवीर्य सु काल क्षेतर, ज्ञान चारित पर मिले। इस पूर्व को जो अर्थ जाने, उपाध्याय सो जानिये। वसुद्रव्यतैं पद जजों मन वच, भक्ति उर अति आनिये।। ॐ ह्रीं वीर्यानुवादपूर्वज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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