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बेसरी छन्द आचारांग भने सुखदाई, सूत्रकृतांग रहस सब पाई। थाना अँग सथान बताये, समवाया अँग के गुण थाये।। व्याख्याप्रगपति अँग को जाने, ज्ञातृकथा को भेद बखाने।
अँग उपासकाध्यन सुधायो, अन्तकृतांगदशांग सुझायो। अनुत्तरपाददशांग सुजानो, अँग प्रश्न व्याकरण बतानो। स्त्र विपाक अँग हितकारी, ताको रहस लियो गुरुसारी।। ये एकादश अँग तिन पाये, उपाध्याय सो सब मन भाये। अब पूरब चौदह सुन भाई, प्रथम पूर्व उत्पाद कहाई।।
अग्रायणि पूरब को धारें, वीर्यप्रवादपूर्व अघ जारे। अस्ति नास्ति परवाद सु जानो, ज्ञानप्रवाद पंचमों मानो।। सत्यप्रवाद पूर्व को पावे, आत्मप्रवाद पूर्व समझावे। कर्मप्रवाद पूर्व सुखकारी, प्रत्याख्यान पूर्व को धारी।। पूर्व विद्यानुवाद को जाने, पूर्व कल्याणवाद अघ हाने। प्राणवाद पूरब हरि पायो, पूर्व क्रियाविशाल उर जायो।।
अन्तिम लोक बिन्दु है भाई, ये चौदह पूरब सुखदाई। इनके धार उपाध्या होवें, तिनके जजें सुरग शिव जोवे।।
सोरठा
जो पूरब अंग धार, तिन जग पूजत पद लयो।
सो करि है अघछार, तिन पूजे जिनपद जयो।। ऊँ ह्रीं पंचविंशतिगुणसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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