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सोरठा चौदह पूरब सार, एकादश अंग जूत सही। ये पच्चिस गुण धार, होय उपाध्या सो नमों।।
ॐ ह्रीं पंचविंशतिगुणसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मरहठा छन्द आचारँग में यों बतलायो, सुनो भवित चित आन। काज सकल ही करो जतनतें, महाशुद्ध उर आन।। या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं आचारांज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा
सूत्रकृतांग दूसरो अंग है, तामें यों व्याख्यान। धर्म तनी किरिया सब यामें, भाषी है भगवान।। या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं सूत्रकृतांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जानों तीजो अँग सथाना, ता मघि जीव सुथान बताय। एक दोय आदि उन्नीसों, चौसठ षट जिय ठाम सुपाय।।
या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं स्थानांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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