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है समवाय अंग चौथो यह, या मधि सकल वस्तु सम गाय। धर्म अधर्म द्रव्य सम भाषे, जगत जीव सम सम सिध भाय।।
या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ॐ ह्रीं समवायांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
व्याख्याप्रगपति अंग पंचमों, तिन में ऐसो कथन चलाय। अस्ती जीव नास्ती जानो, एक अनेक सुवस्तु सुभाय।।
या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वस्द्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं व्याख्याप्रज्ञत्यंगसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
छठवाँ ज्ञातृकथा अँग जानो, तामें सकल कहो व्याख्यान। चक्री कामदेव तीर्थंकर, इन आदिक पहुँचे शुभ थान।।
या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं ज्ञातृधर्मकथांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जान उपासकाध्ययन सातमों, तामधि श्रावक कथन कहाय। एकादश प्रतिमा आदिक बहु, किरिया का समुदाय बताय।।
या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय।
जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं उपासकाध्ययनांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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