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गतकंटक भू होय, अतिशय सो जिनदेव को।
देव-निमित्तिक सोय, पूजों शिवसुख अवतरे।। ॐ ह्रीं कण्टकरहितधरातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।7।
गन्धोदक-शुभवृष्टि, देव करें अतिशुभ लहे।
सुख पावत लखि सृष्टि, महिमा जिनवर देव की।। ॐ ह्रीं गन्धोदकवृष्ट्यतिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।8।।
जिनपद पूजें देव, कमल रचे हित कारने।
अद्भुत महिमा लेव, भाषित जिन सब भवि करो।। ऊँ ह्रीं पदतलकमलरचनासहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।9।
निर्मल होय अकाश,सब जीवन सुखकार जी।
अतिशय जिन सुखराशि, देव करें उर भक्ति तें।। ॐ ह्रीं निर्मलगमनातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।10।
सब दिश निर्मल होय, धूम मेह वर्जित सुभग।
अतिशय जिनको जोय, देव करें वश भक्ति के।। ॐ ह्रीं सर्वदिशानिर्मलतातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा॥11॥
देव करें जयकार, ता करि नभ बहरो कियो।
अतिशय जिनको सार, देव भक्तिवश उच्चरें।। ऊँ ह्रीं जयजयशब्दातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा॥12॥
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