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होय शरीर सुगन्ध अपार, नासा विर्षे हर्ष करतार। ऐसी शोभा अन्य न पाहि, सो जिन पूजों अध्य चढ़ांहि।। ऊँ ह्रीं सुगन्धितशरीरसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
ऐसो रूपजिनेश्वर लहें, कामदेव कोटिक झवि जहें। यह अतिशय जन्मत जो पांहि, सो जिन पूजों अध्य चढ़ांहि।। ऊँ ह्रीं महारूपातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
भले भले लक्षण से जान, गुण अनेक तनों है खान। यह शुभ छवि सो जन्मत पांहि, सो जिन पूजों अध्य चढ़ांहि।। ऊँ ह्रीं शुभलक्षणातिशयरहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
जन्मत ही तिनके तन होय, शोणित स्वेत वरन अवलोय।
यह अतिशय धारें तन मांहि, सो जिन पूजों अध्य चढ़ांहि।। ऊँ ह्रीं श्वेतवर्णशोणितातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ऐसो वचन कहें मुख सोय, जिनको सुनि जन मोहित होय। मधुर मिष्ट वच अतिसुख दाय, सो जिन पूजों अध्य चढ़ाय॥ ॐ ह्रीं मधुरवचनातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
ताके बल सम और न धाम, है बल अतुल्य जिनेश्वर ठाम।
जन्मत ही बल अतिशय पाय, सो जिन पूजों अध्य चढ़ांहि।। ऊँ ह्रीं अतुल्यबलातिशयसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
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