________________
कड़खा दन्द
भूमि सोवें, सदा भंजन ते ना करें, त्याग वस्त्र तनों शीशलुंचें। खांय इकबार चिति, सुभग ठाने सदा, दंतधावन तजें, साधुमानें।।
चाल (सुन भाई रे)
ये ही पँचगुरु पूजिये, सुनि भाई रे। जी चाहे भव पार चेत मन भाई रे। ये ही भवदधि नाव हैं सुनि भाई रे । को पुण्यतें यह पाय, चेत मन भाई रे ।
कडखा छन्द
ये ही परमेष्ठी पाँच जग पूज्य हैं, मोहसो सुभट इन हेरि मार्यो । शेष कर्म सात तब, परे किस गिनति में, मारि के पलक में काज सार्यो।। आप भव तिर गये, और तारत भये, धारि करुणा, जगत जीव के । दीन को तार, संसार-हर देव हैं, मेटि हैं भगत की जगत फेरी ॥
।। इति भक्ति स्तुतिः समाप्ता।।
1315