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पुनि ठानि तप भवतरण अघहरि, ज्ञान केवल पाय हैं। तब होय अतिशय नाम सुनि जब जन्मते दश थाय हैं।।
छन्द बेसरी तब होय दश जिन लहे सु ज्ञानो, चौदह अतिशय सुरकृत मानो।
आठ प्रतीहारज शुभ होवें, अनन्त चतुष्टय सब मल धोवें।।
चाल छन्द ये छयालीसों गुण जुत देवा, विचरें संग द्वादश भेवा। छवि देखि समोसर्ण केरी, हरि सुर पूजें करि फेरी।।
चाल जोगीरासा की फेरि सिद्धगुण आइ जु पाये, आठ करम के जारे। होय निरंजन चेतन मूरति, लोकशिखर चिति धारें।। आचारज गुण धार छतीसों, सुनि तिन कथा सुहाई। दशधा धर्म तप द्वादश गाये, पंच अचार सुभाई।।
जिनजय की चाल गुप्ति तीन षट आवसी, सब मिलि होंय छतीसा जी। बहुश्रुतगुणपच्चीस है, अंगपूरवसबपूराजी, बहुश्रुतपूजों भावसों, बीस आठ गुन साधु के, तहां पंच महाव्रत सारोजी, पंचसमिति पंचअक्षिदमें, षटआवशि भेंट सुधारोजी।। तेगुरुअतिसुखकार हैं।।
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