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श्रावकगण सुखदाय नमस्ते, क्षमावान् गुणवान् नमस्ते।। जय-जय भाल नवाय नमस्ते, तुच्छबुद्धि ‘कवि लाल' नमस्ते।
भव-वारिधितें तार नमस्ते, यह विनती उरधार नमस्ते।।
दोहा
श्री अरिहन्त जिनेश की, गूंथी शुभ जयमाल। जो पहिरे भवि कण्ठ में, तिनके भाग्य विशाल।।
ऊँ ह्रीं श्रीमण्डपकेवलिसंयुक्त-समवसरणस्थितजिनेन्द्राय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल जो बाँचे यह पाठ सरस मन-लायके, सुनें भव्य दे कान सुन मन हरषायकें। धन-धान्यादि पुत्र-पौत्र-सम्पत्ति वरें, सुरनर के सुख भोगि बहुरि शितिय वरे।।
।इत्याशीर्वादः॥
चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, कामदेव आदि अनेक राजाओं व भव्य जीवों द्वारा
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